class 10th History vvi subjective Question | Social Science vvi Subjective Questin Pdf Download

class 10th hindi

प्रश्न 1. इटली के एकीकरण में मेजनी, काबूर और गैरीबाल्डी के योगदानों को बतावें।

उत्तर-‘मेजनी’ कलम के साथ तलवार में भी विश्वास करता था। वह साहित्यकार के साथ ही एक योग्य सेनापति भी था। लेकिन उसे राजनीति की अच्छी समझ नहीं थी। बार-बार की असफलता के बावजूद वह हार मानने वाला नहीं था। 1848 में यूरोपीय  क्रांति के दौर में मेजनी को आस्ट्रिया छोड़ना पड़ा। बाद में वह इटली की राजनीति में सक्रिय हो गया। वह सम्पूर्ण इटली का एकीकरण कर उसे गणराज्य बनाना चाहता था। लेकन जब आस्ट्रिया ने इटली में चल रहने जनवादी आंदोलन को दबा दिया तो मेजनी को वहाँ से भागना पड़ा।

सार्डिनिया-पिडमाउंट का शासक ‘विक्टर एमैनुएल’ राष्ट्रवादी था और इटली का एकीकरण चाहता था। इस काम में तेजी लाने के लिए उसने ‘काउंट काबूर’ को अपना प्रधानमंत्री बना दिया। काबूर सफल राजनीतिज्ञ और कट्टर राष्ट्रवादी था। उसका मानना था कि इटली के एकीकरण में आस्ट्रिया सबसे बड़ा रोड़ा है। वह आस्ट्रिया को हराने के लिए फ्रांस से मित्रता कर ली और उसकी ओर से 1853-54 के क्रिमिया युद्ध में भाग लेने की घोषण करन दी। युद्ध की समाप्ति के बाद पेरिस के शांति-सम्मेलन में फ्रांस और आस्ट्रिया के साथ पिडमाउंट को भी बुलाया गया। काबूर इसमें सम्मिलत हुआ। अपनी कूटनीति के बल पर उसने इटली को पूरे यूरोप की समस्या बना दिया। इटली में आस्ट्रिया के हस्तक्षेप को गैर कानूनी घोषित कर दिया गया। यह काबूर की बहुत बड़ी
सफलता थी।

‘गैरबाल्डी’ महान क्रांतिकारी था। वह सशस्त्र क्रांति के बल पर दक्षिणी इटली के राज्यों के एकीकरण तथा गणतंत्र की स्थापना के प्रयास में था। पहले तो वह मेजनी का समर्थक था लेकिन बाद में काबूर के प्रभाव में आ गया। काबूर ने इटली के दो प्रांतों सिसली तथा नेपल्स को जीतकर वहाँ गणतंत्र की स्थापना कर दी। इन दोनों प्रांतों को उसने सार्डिनिया पिडमाउंट को दे दिया और स्वयं विक्टर इमैनुएल के प्रतिनिधि के रूप में वहाँ की सत्ता सम्भाल ली।

               अंततः मेजनी, काबूर और गैरबाल्डी के सम्मिलित प्रयास से 1871 तक इटली का एकीकरण होकर रहा।


प्रश्न 2. राष्ट्रवाद के उदय और प्रभाव की चर्चा कीजिए।

उत्तर-राष्ट्रवाद का उदय फ्रांस की क्रांति के फलस्वरूप हुआ। क्रांति की सफलता से पूरे यूरोप में राष्टवाद का लहर उठ गया । फलस्वरूप अनेक छोटे-बड़े राष्ट्रों का उदय हुआ। बाल्कन क्षेत्र के छोटे राज्य एवं जातियों के समूहों में भी राष्ट्रवाद की भावना पनपने लगी। जर्मनी, इटली, फ्रांस, इंग्लैंड जैसे देशों में तो राष्ट्रवाद इतनी कट्टरता से उभरा कि साम्राज्यवाद फैलाने में ये एक-दूसरे से होड़ करने लगे। यह राष्ट्रवाद का नकारात्मक एवं घृणित पक्ष था। औद्योगिक क्रांति की सफलता भी कट्टर राष्ट्रवादिता को हवा देने लगी। ये बड़े साम्राज्यवादी सर्वप्रथम एशिया और बाद में अफ्रीका को अपना निशाना बनाने लगे। इसके लिए इनमें अनेक युद्ध भी हुए। जो जितना शक्तिशाली था, वह उतना ही बड़े भाग पर कब्जा जमा बैट -इन उपनिवेशवादियों ने जहाँ अपनी जड़ जमाई वहाँ
उन्होंने खुलकर शोषण किया। उपनिवेशों से उन्हें दो लाभ प्राप्त हुए। एक तो उद्योगों के लिए कच्चा माल आसानी से मिलने लगा और दूसरा यह कि तैयार माल का बाजार भी हाथ में आ गया। भारत के लिए इंग्लैंड, फ्रांस, पुर्तगाल और हॉलैंड में युद्ध हुआ, जिसमें इंग्लैंड विजयी रहा। हॉलैंड को तो भारत छोड़ना ही पड़ा, पुर्तगाल और फ्रांस एक कोने में सिमट कर रह गए। अफ्रीका को तो इन्होंने बपौती जमीन की तरह बाँटा। यह राष्ट्रवाद का घिनौना प्रभाव था।




प्रश्न 3. जुलाई, 1830 की क्रांति का विवरण दीजिए।

उत्तर-फ्रांस का शासक चार्ल्स दसवाँ निरंकुश तो था ही, घोर प्रतिक्रियावादी भी था। उसने फ्रांस में उभर रही राष्ट्रीयता को तो दबाया ही, जनतांत्रिक भावनाओं को भी कड़ाई से दबाने का काम किया। उसके द्वारा संवैधानिक जनतंत्र की राह में अनेक रोड़े खड़े किए गए। उसने ‘पोलिग्नेक’ को प्रधानमंत्री नियुक्त किया जो उससे भी बड़ा प्रतिक्रियावादी था। उसने पहले से चली आ रही समान नागरिक संहिता के स्थान पर शक्तिशाली अभिजात्य वर्ग को विशेषाधिकार से विभूषित किया। उसके इस कदम को उदारवादियों ने चुनौती समझा। उन्हें यह भी संदेह हुआ कि क्रांति के विरुद्ध यह एक षड्यंत्र है। फ्रांस की संसद एवं उदारवादियों ने पोलिग्ने की कड़ी भर्तसना की। चार्ल्स
दसवें ने इस विरोध की प्रतिक्रिया में 25 जुलाई, 1830 ई. को चार अध्यादेशों द्वारा उदारवादियों को तंग करने का प्रयास किया। इन अध्यादेशों का पेरिस में स्थान-स्थान पर विरोध होने लगा। इसके चलते 28 जून, 1830 ई. में फ्रांस में गृह युद्ध आरम्भ हो गया। वास्तव में यही जुलाई 1830 की क्रांति थी। क्रांति सफल हुई। फलतः चार्ल्स दसवें को फ्रांस की गद्दी छोड़ इंग्लैंड भागना पड़ा। इस प्रकार फ्रांस से बूर्वो वंश का शासन समाप्त हो गया। अब आर्लेयेस वंश को गद्दी सौंपी गई । इस वंश के शासक लुई फिलिप ने उदारवादियों, पत्रकारों तथा पेरिस की जनता के समर्थन से सत्ता प्राप्त की थी, अतः उसकी नीतियाँ उदारवादी तथा संवैधानिक गणतंत्र के पक्ष में थीं।


प्रश्न 4. यूनानी स्वतंत्रता आन्दोलन का संक्षिप्त विवरण दें।

उत्तर-फ्रांसीसी क्रांति से प्रभावित होकर यूनानियों में राष्ट्रीयता की भावना जग गई। कारण कि एक तो सभी यूनानियों का धर्म और उनकी जाति-संस्कृति एक थी, दूसरे कि प्राचीन यूनान सभ्यता, संस्कृति, साहित्य, विचार, दर्शन, कला, चिकित्सा विज्ञान आदि के क्षेत्र में न केवल यूरोप का बल्कि पूरे विश्व का अगुआ था। इसके बावजूद आज वह उस्मानिया साम्राज्य के एक अंग के रूप में जाना जाता था। फलतः तुर्की के विरुद्ध आन्दोलन आरम्भ हो गया। आन्दोलन में मध्य वर्ग का सहयोग मिलने लगा जो काफी शक्तिशाली था।

                                             यूनान की स्थिति तब और विकट हो गई, जब तुर्की ने यूनानी आन्दोलनकारियों को एक-एक कर दबाना शुरू कर दिया। 1821 ई. में यूनानियों ने विद्रोह शुरू कर दिया। रूस तो यूनानियों के पक्ष में था, लेकिन आस्ट्रिया के दबाव के कारण वह खुलकर सामने नहीं आ रहा था। लेकिन जार निकोलस खुलकर यूनान का समर्थन करने लगा। एक प्रकार से सम्पूर्ण यूरोप से यूनान को समर्थन मिलने लगा। यूनान और तुर्की में युद्ध छिड़ गया। अनेक देश यूनानियों के पक्ष में आए, किन्तु तुर्की के पक्ष में केवल मिन ही सामने आया। युद्ध में यूनानी विजयी रहे। तुर्की और मिन दोनों हार गए। इसके बावजूद यूनान को पूर्ण स्वतंत्रता नहीं मिली। वह पूर्ण स्वतंत्र तब हुआ जब 1832 ई. में उसे एक स्वतंत्र राष्ट्र मान लिया गया।

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