प्रश्न 1. कविता के प्रथम अनुच्छेद में निकलनेवाला सूरज क्या है? वह कैसे निकलता है?
उत्तर–कविता के प्रथम अनुच्छेद में निकलनेवाला सूरज मानव-निर्मित विनाशकारी अणु बम (आणविक आयुध) है। जब इसे कहीं गिराया जाता है तब इससे विनाशकारी किरणें उत्सर्जित होती हैं। ये ही किरणें विस्फोट के बाद निकलती हैं और जीव-जन्तु, पेड़-पौधे को जलाकर राख बना देती हैं।
प्रश्न 2. छायाएँ दिशाहीन सब ओर क्यों पड़ती हैं ? स्पष्ट करें।
उत्तर-छायाएँ दिशाहीन सब ओर इसलिए पड़ती हैं, क्योंकि सूरज नहीं उगा था। सूरज के उगने पर जब प्रकाश फैलता है, तब उगे हुए सूरज की विपरीत दिशा में छाया बनती है। लेकिन यह सूरज तो मानव-निर्मित बम था, जो गिराया गया था। गिरने के बाद विस्फोट हुआ और सारा शहर उस प्रकाश में डूब गया। इसी कारण छाया नहीं बन पाई। छाया तो तब बनती है जब किसी निश्चित दिशा से प्रकाश आता है। लेकिन यह प्रकाश स्वयं दिशाहीन था। इसलिए छाया भी दिशाहीन थी।
प्रश्न 3. प्रज्वलित क्षण की दोपहरी से कवि का आशय क्या है ?
उत्तर-प्रज्वलित क्षण की दोपहरी से कवि का यह आशय है कि सुबह के समय जब बम गिराया गया, उसी समय दोपहर के समान सम्पूर्ण शहर प्रकाशमय हो गया और जीव-जन्तु आदि उसमें धू-धू कर जलने लगे। किन्तु कुछ ही क्षणों में यह विनाशलीला खत्म हो गई, क्योंकि सब कुछ राख बन चुकी थी। अतः कवि ने बम-विस्फोट के क्षण को दोपहरी कहा है, क्योंकि एक निश्चित क्षण में ही शहर उजड़ गया तथा चमकता प्रकाश विलीन हो गया।
प्रश्न 4. मनुष्य की छायाएँ कहाँ और क्यों पड़ी हुई हैं ?
उत्तर-मनुष्य की छायाएँ हिरोशिमा शहर में पड़ी हुई हैं जहाँ अमेरिका ने बम बरसाकर अपनी क्रूरता का परिचय दिया था। मनुष्य की छायाएँ इसलिए पड़ी हुई हैं क्योंकि विनाशक तत्व की प्रचंड गर्मी एवं तेज में मानव-शरीर मोम के समान पिघल कर भाप बन गया, जिसकी छाया पत्थरों एवं सीमेंट निर्मित धरातल पर बन गई। यह वैज्ञानिक सच है कि जब कोई पदार्थ द्रव रूप में परिवर्तित होता है तब वहाँ उसकी आकृति छाया के समान बन जाती है जो अवशेष के रूप में दीर्घकाल तक उस घटना के बारे में सबूत पेश करती है।
प्रश्न 5. हिरोशिमा में मनुष्य की साखी के रूप में क्या है?
उत्तर-हिरोशिमा में मनुष्य की साखी के रूप में पत्थर पर लिखी हुई मानव की जली हुई छाया है। कवि कहता है कि झुलसे पत्थरों एवं सीमेंट निर्मित धरातल पर बनी छाया दुर्दात मानवीय विभीषिका की कहानी कहती है। यह दुर्घटना अतीत की भीषणतम विनाशलीला का सबूत है। इससे पता चलता है कि यह बसा-बसाया शहर एकदिन अमेरिका की क्रूरता का शिकार हुआ था। इसने मानव-जाति पर प्रश्न-चिह्न खड़ा कर दिया था कि जब मानवीय मूल्य में ह्रास होता है तब मानवता का लोप हो जाता है, जैसा कि 1945 ई. में अमेरिका ने अपनी धाक जमाने के लिए हिरोशिमा पर बम गिराकर नृशंसता का सबूत पेश किया, जिसका स्मरण कर मनुष्य आज भी सिहर उठता है।
प्रश्न 6. ‘आज के युग में इस कविता की प्रासंगिकता स्पष्ट कीजिए।
उत्तर–प्रस्तुत कविता ‘हिरोशिमा’ आज के परिवेश में भी पूर्ण प्रासंगिक है, क्योंकि आज सारा विश्व आणविक अस्त्रों के निर्माण में जुटा नित्य नए-नए विध्वंसकों का संचय कर रहा है। हर देश बम वर्षक विमान, प्रक्षेपास्त्र, मिसाइल आदि का निर्माण कर अपनी मारक-शक्ति का परिचय दे रहा है। लोग हर क्षण इस भय में त्रस्त रहते हैं कि जब कभी क्रूरता अपना पाँव पसारने का प्रयास करेगी, सारा विश्व जल उठेगा। मानव-जाति का नाम सदा के लिए मिट जाएगा। सारा विश्व वीरान हो जाएगा। विश्व के वर्तमान परिदृश्य को देखते हुए ही कवि ने चेतावनी दी है, ताकि हिरोशिमा की पुनरावृत्ति न हो। लेकिन वैश्विक राजनीति से उपजते संकट की आशंकाओं को नकारा नहीं जा सकता। अतः यह कविता आज के परिवेश में भी पूर्ण प्रासंगिक है।