प्रश्न 1. कविता के प्रथम अनुच्छेद में कवि भारतमाता का कैसा चित्र प्रस्तुत करता है?
उत्तर-कविता के प्रथम अनुच्छेद में कवि ने भारत की आत्मा कहे जाने वाले ग्रामीणों के त्रासदीपूर्ण जीवन का धुंधला और मटमैला चित्र प्रस्तुत किया गया है। ये लोग जो धन-वैभव, शिक्षा-संस्कृति आदि तमाम दृष्टियों से पिछड़े हुए मिट्टी की मूर्ति के समान अन्यायों को सहन करते
प्रश्न 2. भारतमाता अपने ही घर में प्रवासिनी क्यों बनी हुई है?
उत्तर-पराधीनता के कारण भारतमाता अपने ही घर में प्रवासिनी बनी हुई है। विदेशी होने के कारण लोगों को अपने शासक के आदेशों का पालन करना पड़ता था। इसलिए विदेशी सरकार के हर जुल्म अन्याय तथा शोषण को उन्हें चुपचाप सहन करना पड़ता है। देश की संप्रभुता नष्ट होने के कारण सारे साधनों पर उनका अधिकार है। वे उसी की मर्जी से किसी साधनों का उपयोग कर सकते है अथवा नहीं। जमीन-जायदाद, शिक्षा-संस्कृति तथा कल-कारखाने सब कुछ उनके अधीन हैं, इसलिए लोग अपने घर में भी बेगाना हैं।
प्रश्न 3. कविता में कवि भारतवासियों का कैसा चित्र खींचता है ?
उत्तर–कविता में कवि ने भारतवासियों का दयनीय, धुंधला, मटमैला तथा विषादमय चित्र प्रस्तुत किया है। कवि को इनकी ऐसी जर्जर दशा पर भ्रम हो जाता है कि यह देश हमारा वही भारत है जो अतीत में कभी सभ्य, सुसंस्कृत, ज्ञानी और वैभवशाली रहा था। आज उसी देश का वासी, शोषण की चक्की में पिसता हुआ भरपेट भोजन एवं भरदेह वस्त्र के लिए लालायित है। जिस देश ने व्यास तथा वाल्मीकि जैसे ज्ञानी, राम-कृष्ण जैसे अतिमानव का जन्म दिया तथा वेद जैसे ग्रंथ की रचना की, आपसी फूट के कारण पराधीन, मूढ, असभ्य, अशिक्षित, निर्धन तथा परमुखापेक्षी है। अतः कवि ने भारतवासियों की पराधीनता कालीन स्थिति का बड़ा ही विषादमय तथा कारूणिक जीवन का चित्र उकेरा है।
प्रश्न 4. भारतमाता का हास भी राहुग्रसित क्यों दिखाई पड़ता है ?
उत्तर-कवि का कहना है कि जिस देश की यशोगाथा का गान वेदों ने किया है। जिसके ज्ञान-विज्ञान ने संसार को एक नई दिशा प्रदान की। जिसकी गौरव-गाथा से इतिहास के पृष्ठ भरे पड़े हैं। अर्थात् जिसके अतीत अति उज्ज्वल एवं वैभवशाली थे, आज वही देश परतंत्रता की बेड़ी में जकड़ा त्राहि-त्राहि कर रहा है। इसीलिए कवि कहता है कि इस देश का अतीत चाहे जितना भी गरिमापूर्ण रहा हो, लेकिन वर्तमान को देखते हुए धन-वैभव, शिक्षा-संस्कृति, जीवनशैली आदि तमाम दृष्टियों से पिछड़ा हुआ, धुंधला और मटमैला दिखाई पड़ता है। तात्पर्य कि जिस प्रकार शरद् का चाँद राहुप्रसित होने पर पूर्णिमा की रात अंधेरी हो जाती है, उसी प्रकार गौरवशाली अतीत होते हुए आपसी मौन है। आज फूट के कारण आज हम फिरंगी के अधीन है।
प्रश्न 5. कवि भारतमाता को गीता प्रकाशिनी मानकर भी ज्ञानमूढ़ क्यों कहता है?
उत्तर–कवि भारतमाता अर्थात् देशवासियों को ज्ञानमूढ़ इसलिए कहता है, क्योंकि अर्जुन की अज्ञानता नष्ट करने के लिए ही श्रीकृष्ण को गीता का उपदेश देना पड़ा था। स्वयं श्रीकृष्ण ने अपने उपदेश में कहा भी था कि अज्ञानता के कारण ही व्यक्ति स्वार्थी अथवा मोहग्रस्त होता है, जो उसे विनाश की ओर ले जाता है। अतः कवि के कहने का तात्पर्य है कि गीता के मर्म को जानते हुए भी देशवासी अपने पर हो रहे जुल्म का विरोध नहीं करते हैं। इसलिए कवि भारतमाता को ज्ञानमूढ़ कहता है।
प्रश्न 6. कवि की दृष्टि में आज भारतमाता का तप-संयम क्यों सफल है ?
उत्तर-कवि ने तप-संयम की सफलता के विषय में कहकर महात्मा गाँधी के सत्य- अहिंसा की ओर संकेत किया है। कवि का कहना है कि. गाँधीजी ने अहिंसा रूपी अमृत रस का पान कराकर लोगों के भीतर स्थित भय, आतंक तथा अज्ञानता को नष्ट कर दिया है। तात्पर्य यह कि गाँधीजी का अहिंसात्मक संघर्ष ने देशवासियों में एक ऐसा विश्वास पैदा कर दिया है कि संगठन में वह शक्ति होती है जो महान-से-महान शक्तिशाली को समूल नष्ट कर सकता है। कवि का मानना है कि गाँधी के विचार ने लोगों पर जादू-सा प्रभाव डाला है। लोगों में राष्ट्रीयता की भावना स्वतंत्रता प्राप्ति के लिए जोर मारने लगी है। लोग भारतमाता की आजादी के लिए तन-मन-धन से जुट गए हैं। अहिंसा रूपी अस्त्र ने देशवासियों में एक ऐसा चमत्कार पैदा कर दिया है कि वे फिरंगी को जड़ से उखाड़ फेंककर ही दम लेंगे।