प्रश्न 1. जैव विविधता का क्या आधार है?
उत्तर-जैव विविधता का एक आधार उस क्षेत्र में पाई जाने वाली विभिन्न स्पीशीज की संख्या पर है। परंतु जीवों के विभिन्न स्वरूप भी महत्त्वपूर्ण हैं।
प्रश्न 2. क्या होगा यदि वायु में CO2 की मात्रा बढ़ जाये?
उत्तर-वायु में कार्बन डाइऑक्साइड की मात्रा बढ़ने से प्रभाव-
(i) फसल पैदावार के क्रम में परिवर्तन ।
(ii) मानसून वर्षा का समय बदल जाएगा।
(iii) हिमपिण्ड (ध्रवों पर) पिघलने लगेंगे तथा पृथ्वी के निम्न धरातल वाला क्षेत्र बाढ़ के कारण जलमग्न हो जाएगा।
प्रश्न 3. संयुक्त वानिकी प्रबन्धन क्या है ?
उत्तर- इसका आशय सहभागिता का विकास करना है जो स्थानीय समुदायों तथा जनजातियों व वन विभाग के बीच होता है। यह सहभागिता परस्पर विश्वास तथा संयुक्त कार्य एवं उत्तरदायित्व वनों के प्रति परियोजना तथा विकास को निभाने का होता है। संयुक्त वानिकी प्रबन्धन के अन्तर्गत प्रयोगकर्ता तथा स्वामी संसाधनों का प्रबन्धन करते हैं तथा व्यय को भी बराबर-बराबर वहन करते हैं।
प्रश्न 4. जल संग्रहण की किसी एक पुरानी और पारम्परिक पद्धति का वर्णन करें।
उत्तर-जल संग्रहण की एक पुरानी और पारम्परिक पद्धति है-‘खादिन’। यह भारत के राजस्थान राज्य में कृषि के उपयोग हेतु प्रचलित एक पारम्परिक जल-संरक्षण की विधि है। खादिन वास्तव में एक लम्बी बाँध संरचना है जिसका निर्माण ढालू कृषि क्षेत्र के आर-पार किया जाता है। वर्षा का जल खादिन में इकट्ठा होता है जिसका उपयोग सिंचाई इत्यादि के लिए किया जाता है।
प्रश्न 5. अपने प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण हेतु पाँच कार्यों का उल्लेख करें।
उत्तर-प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण हेतु पाँच कार्य इस प्रकार हैं-
(i) विद्युत उपकरणों का व्यर्थ उपयोग नहीं करना।
(ii) रोशनी के लिए CFL’s का प्रयोग करना।
(ii) स्कूल आने-जाने के लिए अपने वाहन की जगह सरकारी वाहनों का प्रयोग करना।
(iv) नहाने में कम-से-कम पानी का उपयोग करना।
(v) पर्यावरण के संरक्षण से संबंधित जागरूकता अभियान में भाग लेना।
प्रश्न 6. मृदा प्रदूषण के कारणों का वर्णन कीजिए।
उत्तर- कोई भी ऐसा पदार्थ जो भूमि संस्थान में सामान्य या असामान्य रूप से उपस्थित होकर भूमि की उपजाऊ क्षमता को प्रभावित करता है, भूमि प्रदूषण कहलाता है।
आधुनिक कृषि, उर्वरक आदि प्रदूषण का कारण हैं । बहित मल, CO2की बढ़ती मात्रा, औद्योगिक अपशिष्ट पदार्थ, स्वतः चल निर्वातक, रेडियोधर्मी पदार्थ, कीटाणुनाशक, कवकनाशी आदि अन्य प्रदूषक
प्रश्न 7. प्राकृतिक संसाधनों के ह्रास में जनसंख्या वृद्धि का कितना हाथ है।
उत्तर-जनसंख्या दिन-प्रतिदिन बढ़ रही है। जनसंख्या वृद्धि के साथ-साथ अनेक आवश्यकताएँ भी उभर कर सामने आ रही हैं। इन आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए प्राकृतिक संपदाओं की कमी हो रही है। प्राकृतिक संपदाएं अधिक मात्रा में होते हुए भी सीमित हैं जबकि जनसंख्या चरम सीमा पर पहुँच गई है। बढ़ती हुई जनसंख्या की आवश्यकताओं की पूर्ति करने के लिए भी प्राप्त संसाधन सीमित दायरे में हैं। यदि जनसंख्या वृद्धि का यह भूचाल अधिक बढ़ता ही गया तो प्राकृतिक संसाधन से प्राप्त संपदाएं अपना संतुलन बनाए रखने में समर्थ नहीं होंगी।
प्रश्न 8. वनों के कटने से क्या हानि होती है?
उत्तर—यदि वृक्षों के कटने की दर उनकी वृद्धि से अधिक हो तो वृक्षों की संख्या धीरे-धीरे कम होती जाएगी। वृक्ष वाष्पण की क्रिया से बड़ी मात्रा में जल मुक्त करते हैं। इससे वर्षा वाले बादल आसानी से बनते हैं। जब वन कम हो जाते हैं तब उस क्षेत्र में वर्षा कम होती है। इससे वृक्ष कम संख्या में उग पाते हैं। इस प्रकार एक दुष्चक्र आरंभ हो जाता है और वह क्षेत्र रेगिसतान भी बन सकता है। वृक्षों के बहुत अधिक मात्रा में कटने से जैव पदार्थों से समृद्ध मिट्टी की सबसे ऊपरी
परत वर्षा के पानी के साथ बहकर लुप्त होने लगती है।
प्रश्न 9. कोयला और पेट्रोलियम को किस प्रकार लंबे समय तक बचाया जा सकता है?
उत्तर—कोयुला पेट्रोलियम का उपयोग मशीनों की दक्षता पर भी निर्भर करता है। यातायात के साधनों में अतिरिक्त दहन-इंजन का प्रयोग होता है। लंबे समय तक इसके उपयोग के लिए शोध किया जा रहा है कि इनमें ईंधन का पूर्ण दहन. किस प्रकार सुनिश्चित किया जा सकता है। यह भी प्रयत्न किया जा रहा है कि इनकी दक्षता भी बढ़े तथा वायु प्रदूषण को भी कम किया जा सके और इन्हें लंबे समय तब बचाया जा सके।
प्रश्न 10.बाघ संरक्षण योजना क्या है ? इसे कब लागू किया गया था?
उत्तर-लगातार बाघों की घटती संख्या को ध्यान में रखकर भारत सरकार ने प्रोजेक्ट टाइगर नामक परियोजना की शुरूआत की है। इस सुरक्षा परियोजना के फलस्वरूप लगातार भारतीय वनों में बाधों की संख्या बढ़ती जा रही है। आज बाघों की लगातार बढ़ती संख्या के कारण इन बाधों को एक उचित, विस्तृत वन क्षेत्र नहीं मिल पा रहा है। ऐसी स्थिति में सरकार के लिए वनों के विस्तार और विकास के लिए लगातार प्रयास करने की आवश्यकता है ताकि इन स्वछंद बाघ को मुक्त स्वतंत्र, विस्तृत वातावरण मिल सके। बाघ संरक्षण योजना को 1973 ई. में लागू किया गया