जैव प्रक्रम | science vvi subjective question 2021 | class 10th science important question 2021

10th Science Question

प्रश्न 1. किण्वन क्या है?

उत्तर-वह रासायनिक क्रिया जिसमें सूक्ष्म जीव (यीस्ट) शर्करा का अपूर्ण विघटन करके CO, तथा ऐल्कोहॉल, ऐसीटिक अम्ल इत्यादि का निर्माण होता है, किण्वन (Fermentation) कहलाती है। इसमें कुछ ऊर्जा भी मुक्त होती हैं।


प्रश्न 2. जल-रंध किसे कहते हैं?

उत्तर-ये विशेष रचनाएँ जलीय पौधों या छायादार शाकीय पौधों में पाई जाती हैं। ये पत्तियों की शिराओं के शीर्ष पर अति सूक्ष्म छिद्र के रूप में होती हैं जिसमें पानी बूंदों के रूप में नि:स्राव होता है। इसी कारण उन्हें जलमुख या जलरंध्र कहते हैं।


प्रश्न 3. विसरण किसे कहते हैं?

उत्तर-विसरण वह क्रिया है जिसमें उच्च सांद्रता क्षेत्र से निम्न सांद्रता की ओर आयनों और अणुओं का अभिगमन होता है। विसरण में अर्द्धपारगम्य झिल्ली से होकर अभिगमन नहीं होता है। यह क्रिया ठोस, द्रव और गैस तीनों में हो सकती है।


प्रश्न 4.. विषमपोषी पोषण से आप क्या समझते हैं? 

उत्तर-पोषण की वह विधि जिसमें कोई जीव अपना भोजन स्वयं न बना पाने के कारण अन्य जीवों पर आश्रित रहता है विषमपोषी पोषण कहलाती है। हरे पौधों एवं अन्य स्वपोषियों के अलावा प्रायः सभी सजीव विषमपोषी ही होते हैं।


प्रश्न 5.हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी के क्या परिणाम हो सकते हैं? 

उत्तर-हमारे शरीर में हीमोग्लोबिन की कमी से रक्ताल्पता (anaemia) हो जाता है। हमें श्वसन के लिए आवश्यक ऑक्सीजन की प्राप्ति नहीं होगी जिस कारण हम शीघ्र थक जाएँगे। हमारा भार कम हो जाएगा। हमारा रंग पीला पड़ जाएगा। हम कमजोरी अनुभव करेंगे।


प्रश्न 5.. आंत में विलाई पाये जाते हैं, लेकिन अमाशय में नहीं, क्यों?

उत्तर-आंत में पचे हुए भोजन के अवशोषण के कार्य को पूरा करने के लिए विलाई पाये जाते हैं। ये अवशोषण सतह को बढ़ाते हैं। आमाशय में अवशोषण का कार्य नहीं के बराबर होता है। इस कारण इसमें विलाई नहीं पाये जाते हैं


प्रश्न 6. श्वसन के लिए ऑक्सीजन प्राप्त करने की दिशा में एक जलीय जीव की अपेक्षा स्थलीय जीव किस प्रकार लाभप्रद है ?

उत्तर–जलीय जीव जल में घुली हुई ऑक्सीजन का श्वसन के लिए उपयोग करते हैं। जल में घुली हुई ऑक्सीजन की मात्रा वायु में उपस्थित ऑक्सीजन की मात्रा की तुलना में बहुत कम है। इसलिए जलीय जीवों के श्वसन की दर स्थलीय जीवों की अपेक्षा अधिक तेज होती है। मछलियाँ अपने मुँह के द्वारा जल लेती हैं और बल-पूर्वक इसे क्लोम तक पहुँचाती हैं। वहाँ जल में घुली हुई ऑक्सीजन को
रुधिर प्राप्त कर लेता है।


प्रश्न 7. कोई वस्तु सजीव है, इसका निर्धारण करने के लिए हम किस मापदण्ड का उपयोग करेंगे? 

उत्तर-यद्यपि हम अपने चारों ओर अनेकों वस्तुओं को देखते हैं। अब हमें इस बात की पुष्टि करनी है कि कौन-सी वस्तु जीवित है तथा कौन-सी वस्तु अजीवित है। इसके लिए हम उनमें होने वाली गति को देखते हैं। यदि वस्तु बिना किसी बाह्य शक्ति के गति करती है तो उसे जीवित कहते हैं। यदि कोई बहुकोशिकीय जीव सोई हुई अवस्था में है तो भी आणविक गति निरंतर हो रही है । यद्यपि वह बाहर से दिखाई नहीं पड़ती तो भी उनमें गति हो रही होती है। स्पष्ट है कि गति द्वारा हम सजीव
तथा निर्जीव वस्तु का निर्धारण कर सकते हैं।


प्रश्न 8. हमारे जैसे बहुकोशिकीय जीवों में ऑक्सीजन की आवश्यकता पूरी करने में विसरण क्यों अपर्याप्त है?

उत्तर-मानव जैसे बहुकोशिकीय जीवों जिनके शरीर में कोशिकाएँ तथा ऊतक ही नहीं होते वरन् अंग तथा अंग संस्थान भी होते हैं, इनमें ऊर्जा की बहुत आवश्यकता होती है। अधिकांशत: अंग शरीर में अन्दर की ओर स्थित होते हैं, अतः विसरण क्रिया द्वारा उन सभी अंगों को ऑक्सीजन नहीं पहुँचती जिसके परिणामस्वरूप उनमें उपस्थित भोजन का ऑक्सीकरण नहीं हो पाता। परिणामतः शारीरिक अंग कार्य नहीं करते । अत: मानव जैसे जीवों में ऑक्सीजन को शरीर के विभिन्न अंगों की
कोशिकाओं में पहुँचाने हेतु एक तंत्र होता है जिसे श्वसन तंत्र कहते हैं।




प्रश्न 9.किसी जीव द्वारा किन कच्ची सामग्रियों का उपयोग किया जाता हैं? 

उत्तर – जीवधारी के शरीर की प्रत्येक कोशिका कार्बनिक यौगिकों द्वारा निर्मित होती है जिनमें कार्बन प्रमुख अवयव होता है। इन कोशिकाओं का जीवनकाल निश्चित होता है जिसके पश्चात् जीव की मृत्यु हो जाती है। कुछ कोशिकाएँ कुछ निश्चित सीमा तक विकसित होती है तत्पश्चात् वह विभाजित होती हैं। उसके जीवन काल में उसे सभी जैविक कार्यों को करने के लिए ऊर्जा की आवश्यकता होती है जो उसे कार्बनिक यौगिकों के विघटन से प्राप्त होती है। ये कार्बनिक यौगिक भोजन का रूप धारण करते हैं। ये भोजन ऊर्जा प्राप्ति का बाह यौगिक बनाते हैं।

                                                                                    स्वयंपोषी (हरे पौधों) में कार्बन डाइऑक्साइड वातावरण से प्राप्त होती है तथा जल जड़ों द्वारा भूमि से प्राप्त करते हैं जिसके साथ खनिज भी अवशोषित कर लिए जाते हैं। ये पौधे हरे भागों में सूर्य के प्रकाश की उपस्थिति में परस्पर संयोग करके जटिल कार्बनिक पदार्थ बनाते हैं। इस प्रक्रिया को प्रकाश संश्लेषण कहते हैं।


प्रश्न 10. पाचक एंजाइमों का क्या कार्य है ?

अथवा, आमाशय में पाचक रस की क्या भूमिका है ?

उत्तर – पाचक एंजाइम्स पाचक रसों में उपस्थित होते हैं जो पाचक ग्रन्थियों से उत्पन्न होते हैं। प्रत्येक ग्रन्थि का पाचक एंजाइम विशिष्ट प्रकार का होता है जिसका कार्य भी विशिष्ट हो सकता है। ये पाचक एंजाइम भोजन के विभिन्न पोषक तत्वों को जटिल रूप से सरल रूप में परिवर्तित करके घुलनशील बनाते हैं। उदाहरणार्थ लार में उपस्थित सैलाइवरी एमाइलेज (टायलिन) कार्बोहाइड्रेट को माल्टोज शर्करा में परिवर्तित कर देता है। इसी प्रकार से पेप्सिन प्रोटीन को पेप्टोन में परिवर्तित करता है। अग्नाशय अग्नाशयिक रस का स्रावण करता है जिसमें दिप्सिन नामक एंजाइम होता है जो प्रोटीन का पाचन करता है।


प्रश्न 11. स्तनधारी तथा पक्षियों में ऑक्सीजनित तथा विऑक्सीजनित रुधिर को अलग करना क्यों आवश्यक ?

उत्तर-स्तनधारी तथा पक्षियों का इदय चार वेश्मी होता है। ऊपर के दो कक्ष को राहिला तथा बायर्या अलिन्द कहते हैं जबकि नीचे की ओर के कक्ष दाहिना तथा पाया निलय कहलाते है। दाहिना अलिन्द में शरीर से आनेवाला अशुद्ध रुधिर एकत्र होता कि बाएँ अलिन्द में फेफड़ों से आने वाला शुद्ध रक्त एकत्र होता है। इस प्रकार से दोन प्रकार का रुधिर (शुद्ध तथा अशुद्ध) परस्पर मिल नहीं पाते। सचिर के दोनों प्रकार के न मिलने से ऑक्सीजन के वितरण पर किसी प्रकार का कोई प्रभाव नहीं पड़ता। इस प्रकार का रुधिर संचरण विशेष रूप से उन जन्तुओं के लिए अधिक लाभदायक होता है जिनमें दैनिक कार्यों के लिए अधिक ऊर्जा की आवश्यकता होती है। उदाहरणार्थ स्तनधारी, पक्षी आदि । ऊर्जा की अधिक आवश्यकता शरीर के तापा को सम बनाए रखने के लिए होती है


प्रश्न 12. हमारे शरीर में वसा का पाचन कैसे होता है? यह प्रक्रम कहाँ होता है?

उत्तर- हमारे शरीर में वसा का पाचन आहार नाल की छुद्रांत्र में होता है। यकृत से निकलने वाला पित्तरस, जो क्षारीय होता है, आये हुए भोजन के साथ मिलकर उसकी अम्लीयता को निष्क्रिय करके उसे क्षारीय बना देता है। इसी क्षारीय प्रकृति पर ही अग्नाशयिक रस सक्रियता से कार्य करता है। अग्नाशयिक रस में तीन एंजाइम्स होते हैं-ट्रिप्सिन, एमीलोप्सिन तथा लाइपेज ।

                                                                                  पित्तरस वैसा को सूक्ष्म कणों में तोड़ देता है। इस क्रिया को इमल्सीकरण क्रिया कहते हैं तथा इसे इमल्सीफाइड वसा कहते हैं। लाइपेज एंजाइम इमल्सीफाइड वसा को वसीय अम्ल तथा ग्लिसरॉल में परिवर्तित कर देता है।


प्रश्न13. होमिओस्टेसिस को समझाइए।

उत्तर-मूत्र निर्माण तथा उत्सर्जी पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने के अतिरिक्त वृक्क शरीर में जल, अम्ल, क्षार तथा लवणों का संतुलन बनाये रखने में सहायता देता है। वृक्क रुधिर से अतिरिक्त जल की मात्रा को मूत्र के रूप में शरीर से बाहर निकालता है। इसी प्रकार वृक्क के कारण रुधिर में लवण सदैव एक निश्चित मात्रा में ही मिलते हैं। अमोनिया रुधिर के H की अधिकता को कम करके रुधिर में अम्ल-क्षार संतुलन बनाने में सहायता देती है। वृक्कों द्वारा ही विष, दवाइयाँ आदि हानिकारक पदार्थों का भी शरीर से विसर्जन होता है। अत: वह समस्त क्रियाएँ जिनके द्वारा शरीर में एक स्थायी अवस्था बनी रहती है उसको होमिओस्टेसिस कहते हैं।


 प्रश्न 14. मनुष्य में श्वास लेने की क्रिया विधि के प्रमुख दो आधारों का विवरण दीजिए।

उत्तर-श्वासोच्छ्वास की क्रिया में गैसीय आदान-प्रदान के लिए वायुमंडलीय वायु को फेफड़ों के अंदर लिया जाता है तथा श्वसन के पश्चात् फेफड़े की वायु (CO2) को शरीर से बाहर किया जाता है। मनुष्य के श्वासोच्छ्वास की क्रिया-विधि दो चरणों में पूरी होती है।

(i) निश्वसन-वायुमंडलीय या वातावरणीय वायु फेफड़ों में भरने की क्रिया को निश्वसन कहते हैं। इस क्रिया में मस्तिष्क के श्वसन केंद्र से प्राप्त उद्दीपन के कारण बाह्य इंटरकॉस्टल पेशियाँ संकुचित होती हैं, जिससे पसलियाँ बाहर की ओर झुक जाती हैं। इसी समय डायफ्राम की अरीय पेशियाँ संकुचित तथा उदर पेशियाँ शिथिल हो जाती हैं, जिससे वक्षीय गुहा का आयतन बढ़ने के साथ फेफड़े का आयतन भी बढ़ जाता है, फलतः श्वसन पथ से वायु अंदर आकर फेफड़े में भर जाती है।

(ii) नि:श्वसन—वह क्रिया है जिसके द्वारा फेफड़ों की वायु को वायु पथ द्वारा शरीर से बाहर किया जाता है। इस क्रिया में मस्तिष्क के श्वसन केंद्र की उद्दीपन के कारण अंत:इंटरकॉस्टल पेशियाँ संकुचित, डायफ्राम की पेशियाँ शिथिल तथा उदर गुहा की पेशियाँ संकुचित होती हैं, फलत: वक्षीय गुहा के साथ फेफड़े का आयतन कम हो जाता है और फेफड़े की वायु श्वसन पथ से होते हुए बाहर निकल जाती है।



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