इस पाठ में वर्तमान समय में संसार में जो अशांति का वातावरण है उसका चित्रण किया गया है तथा उसका समाधान का उपाय भी बताया गया है | देश में आंतरिक तथा बाह्य दोनों रूप से असान्ति का वातावरण बताया गया है | जिसको उपेक्षा करके कोई भी अपने जीवन जीने में समर्थ नहीं है | यह जो अशांति है सार्वभौमिक है जिसका हमें दुःख है | सभी लोग इस बात से अशांत है तथा चिन्ति है | और पूरा संसार इसके निवारण के लिए प्रयास कर रहा है |
वर्त्तमान समय में प्राय: सभी देशो में उपद्रव और अशांति दिखी देता है | यानि मौजूद है | शायद ही कोई ऐसा देश है जहाँ शांति का वातावरण मौजूद है | कई देशो में अपनी आंतरिक समस्याओ को लेकर कलह है | वाही कई राज्य अपने आंनंद की प्राप्ति के लिए अपने कलह को बढ़ा रहे है | कई राज्यों में प्राय: शीत युध्य चल रहा है | वस्तुत: सभी संसार इस अशांति के वातावरण से झुलस रहा है | अशांति मानव विनाश का कारन है यह कल्पना की जा रही है | आज विश्व में विश्वंसक यस्रो का निर्माण हो रहा है | जिससे पुरे मानव जाती में भैव व्याप्त हो चूका है | यानि भय उत्पन्न हो गया है |
अशांति के कारन के निवारण के लिए हमें एक साथ चिंतित रहना है | कारण की जानकर उसका उपाय करना उसका निवारण करना यही नीतिगत बातें है | विशेषकर अशांति के मुख्यत: दो कारन है द्वेष (इर्ष्या) और असहिष्णुता | एक देश दूसके देश की उन्नति को देखकर उस देश की उत्कर्ष का नाश करने के लिए निरंतर प्रयास करते रहते है | देश में इस प्रकार के असहिष्णुता उत्पन्न होता है |
इस प्रकार दोनों देशो में वैर होता है | स्वार्थ से परस्पर वैर बढ़ते रहता है | स्वार्थ से प्रेरित लोग जिसमे स्वार्थ की भावना उत्पन्न हो जाती है जिसमे अहम् ही भावना उत्पन्न हो जाती है वे लोग दसरे के न जाति , सम्पति ,धर्म,क्षेत्र न भाषा का विस्वास करते है नहीं सहते है | वे लोग अपने आप को सर्व श्रेष्ठ यानि सर्व शक्तिशाली समझने लगते है | राजनितिक दल के नेता लोग भी इस भावना को बढ़ा रहे है | साधारण लोग नहीं बल्कि कुशल लोग संपन्न लोग भी बल पूर्वक इसे बढ़ा रहे है | और इस स्वार्थ को बल पूर्वक निवारण करना चाहिए यदि परोपकार की भावना जागृत हो जाती है तो सभी श्वयम ही स्वार्थ की भावना को त्याग देंगे | यहाँ पे महँ पुरुष पुरुष विद्वान् लोग तथा चिंतन करने वालो की कमी नहीं है | उनका कर्तव्य है की प्रत्येक लोगो , प्रत्येक राज्य और प्रत्येक समाज में प्रत्येक लोगो में परोपकार की भावना को जागृत करना है |
केवल शुख उपदेश की पर्याप्त नहीं है | और प्रत्येक लोगो का इस बात का पालन करना है | कहा गया है – क्रिया बिना ज्ञान भार के सामान है | देशो में मध्य जो विवाद उत्पन्न हो रहा है समय – समय पर उसका समाधान के लिए संयुक राष्ट्र जैसी संस्थायें प्रयाप्त है | समय – समय पर आशंकित विश्व युध्य को निवारण करती है | भगवन बुध्य कहे थे की वैर से वैर कभी शांत नहीं हो सकता है उसी प्रकार महात्मा गाँधी भी कहे थे की सभी लोग आँख के बदले आँख मांगेंगे तो सभी संसार अँधा हो जायेगा | सभी लोगो का यह मन्ना है की दया और मित्रता भाव से ही वैर की समाप्ति हो सकती है | भारतीय नीतिकारो ने सत्य ही कहा है |
या हमारा है वह तुम्हारा है ऐसी गन्ना करने वाले मंद बूढी के होते है यानि नीच जाति से होते है | उदार चरित्र हो वो है जो यह समझता है की पूरा संसार हमारा परिवार है | दुसरो को कष्ट देना श्वयम को नुकसान पहुचता है | और परोपकार ही शांति का कारन होता है | आज कल जो है की एक दुसरे देशो को शंकट के समय सहायता राशि तथा एनी सामग्री देता है | यह विश्वशांति की तरफ आशा की एक किरण प्रज्वलित हो रही है |