‘कर्णस्य दानवीरता’ Class 10th Sanskrit Subjective Question 2021 | Sanskrit Important Question 2021

class 10th sanskrit

1 .कर्ण कौन था? उसकी क्या विशेषता थी?

उत्तर कर्ण कुंती का पुत्र था, परंतु महाभारत के युद्ध में उसने कौरव पके लड़ाई की। उसके शरीर पर जन्मजात कवच और कुंडल था। जब तक कवच और कुंडल उसके शरीर से अलग नहीं होता, तब तक कर्ण की मृत्यु असंभव थी। वह महादानी था।


2.दानवीर कर्ण इन्द्र को दान में क्या दिया ? तीन वाक्यों में उत्तर दीजिए | अथवा, ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर दान की महत्ता को बताए |

उत्तर-दानवीर कर्ण ने इन्द्र को अपना कवच और कुण्डल दान में दिया । कर्ण को ज्ञात था कि यह कवच और कुण्डल उसका प्राण-रक्षक है। लेकिन दानी स्वभाव होने के कारण उसने इन्द्ररूपी याचक को खाली लौटने नहीं दिया।





3. दानवीर दानवीरता’ पाठ के आधार पर इन्द्र के चरित्र की विशेषताओं को लिखे ?

उत्तर इन्द्र स्वर्ग का राजा है किन्तु वह सदैव सकित रहता है कि कहीं कोई उसका पद छीन न ले। वह स्वार्थी तथा छली है। उसने महाभारत में अपने पुत्र अर्जुन को विजय दिलाने के लिए ब्राह्मण का वेश बनाकर छल से कर्ण का कवच-कुण्डल दान में ले लिया ताकि कर्ण अर्जुन से हार जाए।


4. भास के नाटकों की क्या विशेषता है?

उत्तर – भास के तेरह नाटक हैं, जिनमें कर्णभार नाटक सबसे सरल और अभिनय-योग्य है। इनके नाटकों की विशेषता यह है कि साधारण जनता भी इनका अभिनय कर सकती है। इनके नाटकों की कथाएँ विशेष रूप से महाभारत से ली जाती हैं।


5 .’कर्णस्य दानवीरता’ पाठ के आधार पर दान की महिमा का वर्णन करें।

उत्तर कर्ण जब कवच और कुंडल इन्द्र को देने लगते हैं तब शल्य उन्हें रोकते हैं। इसपर कर्ण दान की महिमा बतलाते हुए कहते हैं कि समय के परिवर्तन से शिक्षा नष्ट हो जाती है, बड़े-बड़े वृक्ष उखड़ जाते हैं, जलाशय सूख जाते हैं, परंतु दिया गया दान सदैव स्थिर रहता है, अर्थात दान कदापि नष्ट नहीं होता है।


6.  ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ कहाँ से उद्धत है? इसके विषय में लिखें।

उत्तर – ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ भास-रचित कर्णभार नामक रूपक से उद्धृत है। इस रूपक का कथानक महाभारत से लिया गया है। महाभारत युद्ध में कुंतीपुत्र कर्ण कौरव पक्ष से युद्ध करता है। कर्ण के शरीर में स्थित जन्मजात कवच और कुंडल उसकी रक्षा करते हैं । इसलिए इन्द्र छलपूर्वक कर्ण से कवच और कुंडल माँगकर पांडवों की सहायता करते हैं।


7. कर्ण के प्रणाम करने पर इन्द्र ने उसे दीर्घायु होने का आशीर्वाद कयों नहीं दिया?

उत्तर- इन्द्र जानते थे कि कर्ण को युद्ध में मरना अवश्यंभावी है। कर्ण को यदि दीर्घायु होने का आशीर्वाद दे देते, तो कर्ण की मृत्यु युद्ध में संभव नहीं थी। वह दीर्घायु हो जाता। कुछ नहीं बोलने पर कर्ण उन्हें मूर्ख समझता । इसलिए इन्द्र ने उसे दीर्घायु होने का आशीर्वाद न देकर सूर्य, चंद्रमा, हिमालय और समुद्र की तरह यशस्वी होने का आशीर्वाद दिया।


8. कर्णस्य दानवीरता पाठ का पांच वाक्यों में परिचय दें।

उत्तर- यह पाठ संस्कृत के प्रथम नाटककार भास द्वारा रचित कर्णभार नामक एकांकी रूपक से संकलित किया गया है। इसमें महाभारत के प्रसिद्ध पात्र कर्ण की दानवीरता दिखाई गयी है। इन्द्र कर्ण से छलपूर्वक उनके रक्षक कवचकुण्डल को मांग लेते हैं और कर्ण उन्हें दे देता है। कर्ण बिहार के अङ्गान्य (मुंगेर तथा भागलपुर) का शासक था। इसमें संदेश है कि दान करते हुए मांगने वाले की पृष्ठभूमि जान लेनी चाहिए, अन्यथा परोपकार विनाशक भी हो जाता है।


9. कर्णस्य दानवीरता’ पाठ से हमें क्या शिक्षा मिलती है?

उत्तर ‘कर्णस्य दानवीरता’ पाठ में कर्ण ने इन्द्र को जन्मजात कवच और कुंडल दान किया। इस पाठ से हमें यह शिक्षा मिलती है कि दान ही मनुष्य का सर्वश्रेष्ठ गुण है, क्योंकि केवल दान ही स्थिर रहता है। शिक्षा समय-परिवर्तन के साथ समाप्त हो जाती है । वृक्ष भी समय के साथ नष्ट हो जाता है। इतना ही नहीं, जलाशय भी सूखकर समाप्त हो जाता है। इसलिए कोई मोह किए बिना दान अवश्य करना चाहिए।





10. इन्द्र ने कर्ण से कौन-सी बड़ी भिक्षा मांगी और क्यों?

उत्तर इन्द्र ने कर्ण से बड़ी भिक्षा के रूप में कवच और कुंडल माँगी । अर्जुन की सहायता करने के लिए इन्द्र ने कर्ण से छलपूर्वक कवच और कुंडल माँगे क्योंकि जब तक कवच और कुंडल उसके शरीर पर विद्यमान रहता, तब तक उसकी मृत्यु नहीं हो सकती थी। चूंकि कर्ण कौरव पक्ष से युद्ध कर रहे थे, अतः पांडवों को युद्ध में जिताने के लिए कर्ण से इन्द्र ने कवच और कुंडल की याचना की।


11. कर्ण की दानवीरता का वर्णन अपने शब्दों में करें। 

उत्तर – कर्ण सूर्यपुत्र है । जन्म से ही उसे कवच और कुण्डल प्राप्त है । जबतक कर्ण के शरीर में कवच-कुण्डल है तब तक वह अजेय है। उसे कोई मार नहीं सकता है। कर्ण महाभारत युद्ध में कौरवों के पक्ष में युद्ध करता है। अर्जुन हैं । इन्द्र अपने पुत्र हेतु छलपूर्वक कर्ण से कवच और कुण्डल माँगने जाते हैं। दानवीर कर्ण सूर्योपासना के समय याचक को निराश नहीं लौटाता
है। । इन्द्र इसका लाभ उठाकर दान में कवच-कुण्डल माँग लेते हैं। सब कुछ जानते हुए भी इन्द्र को कर्ण अपना कवच-कुंडल दे देता है।


12. कर्ण को दानवीरता कैसे प्रकट होती है? सटीक उत्तर दें।

उत्तर – कर्ण ब्राह्मणवेशधारी इन्द्र को विनम्रतापूर्वक सर्वप्रथम भौतिक वस्तुएँ प्रदान करना चाहते यथा-गौ, हाथी, पृथ्वी । यहाँ तक कि अपने अग्निष्टोम यज्ञ का फल भी देना चाहते हैं और अन्ततः अपना सिर तक अर्पित करने के लिए उद्यत हो उठते हैं। परन्तु ब्राह्मणवेशधारी शक्र (इन्द्र) तो दृढ़ संकल्पित कुछ अन्य वस्तु के प्रति थे । कर्ण उनकी मनोदशा को समझकर अपनी रक्षार्थ शरीर
से जुड़े कवच-कुण्डल को दान दे देते हैं। इतना बड़ा दान कर्ण को सम्पूर्ण ब्राह्मण्ड का दानवीर सिद्ध करता है

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